Friday 16 March 2012

‘‘पुलिस यातना से संघर्षरत पीडि़त का स्व व्यथा-कथा’’

मेरा नाम हरिश्‍चन्‍द्र उर्फ भोथू, उम्र-लगभग 60 वर्ष, पुत्र-स्व सालीक राम, ग्राम-भेलखा, जैतपट्टी, पोस्ट-चमाऊ (तरना शिवपुर) थाना-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी (उ0प्र0) का निवासी हूँ।

लगभग चार-पाँच वर्ष पहले हम भट्टा मालिक प्रदीप, भेलखा को छप्पर छाजने के लिए सामग्री दिये थे, उसी का पैसा मांगने वहाँ गये हुये थे, वे वहाँ नही थे। उस समय भट्टा पर राँची के मजदूर थे, जो अपने पीने के लिए शराब बनाते थे। हम वहां अभी पहुँचे ही थे, देखे कि सभी भाग रहे है, हम बोले-क्यों भाग रहे हो, तभी उनमें से एक ने हमें पीछे देखने को बोला। हम पीछे देखे, वहाँ दरोगा (हरहुआ चैकी इंचार्ज विरेन्द्र कुमार मिश्रा) खड़ा थे। हमने सलाम किया, इस पर वे गाली बकने लगे। हम बोले-साहब हम सलाम कर रहे है, आपसे उम्र में बड़े भी है और आप मां-बहन की गाली दे रहे है। इतना सुनते ही वे तथा एक सिपाही (अमर नाथ सिंह यादव) हमें डण्डा व लात-घूसों से मारने लगे, जिसमें मेरा दायां हाथ की हड्डी टूट गयी, बायां हाथ के बीच वाली अंगूली फट गयी और बायां पैर की घूटना का कटोरी (हड्डी) ही निकल गया तथा दाया पैर का अंगूठा फट गया था। उसी हालात में हमें बड़ागाँव थाना ले आए। रात में S.O. के कहने पर हमारा ईलाज अस्पताल में करवाया, जहां केवल इन्जेक्शन और मरहम-पट्टी किया गया। उसके बाद रात भर हमें बड़ागाँव थाना में बंद कर दिया। रात भर हम असहनीय पीड़ा से कराह रहे थे, चिल्ला रहे थे। कोई सुनने वाला नही था।

सुबह फिर जीप में बैठाया और बाईपास पर हड्डी अस्पताल-शोभनाथ अस्पताल में भर्ती करवाया। वहाँ हम एक रात और एक दिन रहे। कच्चा प्लस्टर हुआ। अस्पताल में भर्ती कराकर वे लोग चले गये। फिर हम अपने रिश्तेदारों के साथ SSP बंगला पर गये। वहाँ SSP साहब सिपाही के साथ कबीर चैरा अस्पताल भेजे। जहां मेरा उचित ईलाज हुआ, मेडिकल रिपोर्ट बना तथा रात भर पानी चढ़ा और अगले दिन प्लस्टर हुआ। तीन बार प्लस्टर किया गया, लेकिन हालात न सुधरने पर हाथ का आपरेशन किया गया तथा रांड लगाया गया है।

हमने मानवाधिकार जन निगरानी समिति के सहयोग से मुकदमा भी किये, लेकिन अभी तक कोई सुनवाईब नही हुई है। सुबह सोकर उठने पर हाथ-पैर का हड्डी सहलाना पड़ता है, दर्द रहता है, उसके बाद उठते है। जमीन पर बायां पैर ज्यादा देर तक नही रख सकते, क्योंकि सुन्न जैसा होने लगता है, अभी भी सारी बाते दिमाग में आती रहती है, नींद नही आती, कभी-कभी दवा का उपयोग करना पड़ता है।

ईधर हमारा आजीविका की स्थिति गम्भीर है। बच्चे पढ़ाई छोड़कर गारा-मट्टी का काम कर रहे है। हमारा दस हथकरघा पर काम होता था, लेकिन अक्षमता के कारण सभी सड़ गया, बनारसी साड़ी बिनने का काम बंद हो गया है। हम शरीर से लाचार कुछ नही कर पा रहे है।

मानवाधिकार जन निगरानी समिति (PVCHR) वाराणसी, रिहैबिलिटेशन एण्ड रिसर्च सेन्टर फार टार्चर विक्ट्मिस (RCT) , डेनमार्क के सहयोग से 5,000/- रुपये प्रदान कर हमें पुर्नवास करने में सहयोग प्रदान किया है।

हम चाहते है कि मेरे द्वारा दायर मुकदमा में सुनवाई हो, हमें न्याय मिले तथा मुआवजा दिया जाए, जिससे कोई रोजगार-धंधा कर सकूँ।

संघर्षरत पीडि़त- हरिश्‍चन्‍द्र उर्फ भोथू
साक्षात्कारकर्ता- उपेन्द्र कुमार


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